राजनांदगांव : जिला भाजपा पिछड़ा वर्ग मोर्चा के जिला अध्यक्ष शिव वर्मा ने अक्षय तृतीया पर्व पर बधाई देते हुए कहा कि अक्षय तृतीया अर्थात अक्ती के दिन गांव-गाव में ही नहीं, भिन्न-भिन्न समाजों के महाधिवेशनों में आदर्श विवाह की धूम रहती है। अक्ती छत्तीसगढ़ में पुराने और नए के बीच का सेतु है। छत्तीसगढ़ी बैरागी है। वह सदा पुराने से नए, प्राचीन से अर्वाचीन, जड़ता से गतिशीलता की ओर चलता चला आया है। यही इसकी विशेषता है। ‘अक्ती’ छत्तीसगढ़ विशेषता से जुड़ा अनोखा पर्व है। छत्तीसगढ़ में पर्वों और कुछ विशेष तिथियों के भीतर की कथा का अपना ही महत्व है।
श्री वर्मा ने आगे कहा कि “एक पहर रात को यहां पहट कहा जाता है। पहट को उठकर पशुओं को चराने ले जाने वाला ग्वाला पहटिया कहलाता है। कपड़ों को उजलाने वाले धोबी को उजिर और बाल-काटने वाले नाई को ठाकुर का नाम मिला है। ग्राम देवी-देवताओं की सेवा करने वाला ग्राम पुजारी का नाम ही बैगा है।
अक्ती के दिन बैगा गांव पर सदैव कृपा बनाए रखने के लिए देवी से प्रार्थना करता है। अक्ती त्योहार के दिन कमिया अपने मालिक का खास मेहमान होता है। उसे पूरे मान-सम्मान के साथ विशिष्ट भोजन परोसा जाता है।” “छत्तीसगढ़ में आज भी अधिकतर शादियां सादिगीपूर्ण होती हैं। धीरे-धीरे दूसरों की देखा-देखी के कारण अधिक खर्च एवं तामझाम का अनुकरण शहरों के वाशिंदे छत्तीसगढ़ी भी कर रहे है। छत्तीसगढ़ में भिन्न-भिन्न पर्वों का अपना ही महत्व है। आशा और विश्वास बढ़ाने वाले पर्वों में अक्ती विशेष है। मया दया के ये दोना, माटी उपजावै सोना /आस हमर विश्वास हमर, भुइयां संग अगास हमर/’ नदिया-नरवा,कुआं- बावली, बखरी अऊ खलिहान/इहें बसे हे हमर परान। अक्षय तृतीया अर्थात अक्ती के दिन बच्चे अपने मिट्टी से बने गुड्डे- गुड़ियों अर्थात पुतरा-पुतरी का ब्याह रचाते हैं। कल जिन बच्चों को ब्याह कर जीवन में प्रवेश करना है, वे परंपरा को इसी तरह आत्मसात करते हैं। बच्चे, बुजुर्ग बनकर पूरी तन्मयता के साथ अपनी मिट्टी से बने बच्चों का ब्याह रचाते हैं। इसी तरह वे बड़े हो जाते है और अपनी शादी के दिन बचपन की यादों को संजोए हुए अक्ती के दिन मंडप में बैठते है। अक्ती के दिन महामुहूर्त होता है। बिना पोथी-पतरा देखे इस दिन शादियां होती हैं।