हमारा व्यक्तित्व- हमारी सोच स्वभाव पर निर्भर है – आचार्य नंदकुमार चौबे

Rajendra Sahu
6 Min Read

आरंग : किसी व्यक्ति के द्वारा क्रय किया गया लाखों की गाड़ी चाहे वह कोई भी अच्छे से अच्छे कंपनी का हो एक चाबी पर निर्भर होता है, करोड़ो रुपये का घर, भवन, बंगला भी एक चाबी पर निर्भर करता है ,इसी तरह हमारा व्यक्तित्व भी हमारी सोच और स्वभाव पर निर्भर करता है।

IMG 20240523 WA0007

उपरोक्त कथन प्राचीन श्री राधाकृष्ण मंदिर प्रांगण में श्रीमती गंगा बाई गुप्ता द्वारा पति स्व. रामशरण गुप्ता बैहार वाले के स्मृति मे आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ के सप्तम दिवस पर भागवताचार्य पंडित नंदकुमार चौबे जी ने कहा मनुष्य के व्यक्तित्व उनके सोच और स्वभाव पर निर्भर रहता है व्यक्ति के जैसा सोच होता है, जैसे वह सोचता है वैसे ही उनका स्वभाव का निर्माण होता है अपने स्वभाव के अनुरूप वह व्यक्ति व्यवहार करता है और यहीं व्यवहार उनके व्यक्तित्व का निर्माण करता है, अगर व्यवहार में कमी होती है तो उनके व्यक्तित्व में भी न्यूनता आ जाती है और अगर उनका सोच और स्वभाव अच्छा होता है तो समाज में, परिवार में, अपनों के बीच में उनके व्यक्तित्व औरों के लिए भी प्रेरणादायक और स्वीकार करने योग्य हो जाता है । मनुष्य के व्यक्तित्व ही तो है जिसके कारण हर जगह उन्हें सम्माननीय और प्रतिष्ठित बना देता है श्रीमद् भागवत महापुराण में कथा आती है।

एक समय ऋषि महात्माओं ने यज्ञ करने करने के लिए द्वारिका नगरी के पिंडारक क्षेत्र में उपस्थित हुए और उसमें प्रधान देवता कौन होगा इस बात को लेकर आपस में चर्चा करने लगे और निष्कर्ष यह निकला की ब्रह्मा विष्णु महेश में कौन सा देवता महान है जो देवता महान होगा वही देवता का हम प्रधान बेदी में पूजन करेंगे, इसके लिए हमें त्रिदेवों का परीक्षा लेना होगा और सर्वसम्मति से भृगु महात्मा को परीक्षा के लिए नियुक्त किया गया जब भृगु जी परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मा जी के पास गए तो उन्होंने पाया की ब्रह्मा जी तो रजोगुण से संपन्न है और भगवान शंकर तमोगुण से संपन्न है और अंत में जब भगवान विष्णु का परीक्षा लेने गए तो उन्होंने भगवान विष्णु को शेषशैया में सोये हुए जानकर अपने चरण का प्रहार किया जिस भगवान विष्णु उठ कर बैठ गए और महात्मा भृगु के चरण को दबाते हुए कहने लगे आपके पैर (चरण)कमल के पुष्प से भी ज्यादा कोमल है और मेरा छाती पत्थर से भी ज्यादा कठोर है और आपने अपने चरण का मेरे छाती में प्रहार किया तो आपके चरण को दर्द हो रहा होगा ऐसा कहकर भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का सम्मान किया तब महात्मा भृगु ने सिद्ध किया कि भगवान विष्णु सतोगुण संपन्न देवता है यही देवता यज्ञ में पूजा के अधिकारी है , तात्पर्य है कि भगवान विष्णु ब्राह्मण की पद प्रहार को भी आशीर्वाद समझकर स्वीकार किया जिससे आगे चलकर भगवान विष्णु का पूजन तीन लोक 14 भवन में होने लगा । आगे आचार्य नंदकुमार चौबे जी ने कहा एक बार यदुवंशी लोग पिंडारक क्षेत्र में आए हुए। महात्माओ के परीक्षा लेने के लिए जामवंती के पुत्र सांब को गर्भवती स्त्री रूप बनाकर उनके परीक्षा लिए जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा महात्मा ने यदुवंश को नष्ट होने का दे दिए जिसकी जानकारी होने पर उद्धव के द्वारा दुख प्रकट किया गया जिसे समझाने के लिए भगवान कृष्ण ने राजा यादु और भगवान दत्तात्रेय का संवाद सुनते हुए दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा सुनाया गया जिससे उद्धव जी का शोक दूर हुआ और कालांतर में समस्त यदुवंशियों का नाश हो गया और भगवान कृष्ण भी बलराम जी के समेत अपने दिव्य लोक परमधाम को चले गए ।
आगे कथा में आचार्य नंदकुमार चौबे जी ने कहा ब्राह्मण के शाप के कारण राजा परीक्षित भागवत कथा श्रवण किया और सप्तम दिवस तक्षक सर्प के द्वारा काटने पर राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई शरीर भस्म हो गया।

भगवान कृष्ण के परम धाम में जाकर चिरकाल तक निवास किया, परीक्षित के पुत्र जन्मेजय द्वारा सर्पेष्टी यज्ञ किया गया। जिसमें अनेकों सर्पो की मृत्यु हुआ। इसी कारण से राजा जन्मेजय का मन अशांत हो गया और उन्होंने अपने अशांत मन को शांति प्राप्ति के लिए भगवान व्यास नारायण के द्वारा देवी भागवत की कथा श्रवण किया जिससे उनके अशांत मन को शांति प्राप्ति हुई । 18 पुराणों के श्लोक संख्या बताते हुए भागवत महापुराण को विश्राम दिया गया । इस कार्यक्रम मे गुप्ता परिवार के श्री मनमोहन गुप्ता के द्वारा आभार व्यक्त किया गया और आरंग के वरिष्ठ नागरिक शंकर पाल के द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया ।

Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *