नवागांव सिमगा में धान का महापर्व छेरछेरा प्रभात फेरी के साथ मनाया गया

Rajendra Sahu
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सिमगा : पौष पूर्णिमा के दिन सिमगा ब्लॉक के ग्राम नवागाँव एवं आसपास के गांव में मनाया गया छेरछेरा का पर्व, इस दिन धान के दान का है खास महत्व। दान देने का छत्‍तीसगढ़ का यह पर्व छेरछेरा के नाम से जाना जाता है। इस वर्षं यह 25 जनवरी को मनाया गया | सनातन संस्कृति में दान देने की परंपरा हजारों साल से चली आ रही है। राजा बलि ने तीनों लोक भगवान विष्णु को दान कर दिया था। इसी तरह कर्ण भी अपना कवच, कुंडल दान करके महा दानी कहलाए। बर्बरीक ने भी अपना शीश दान किया और खाटू श्याम के रूप में पूजे गए। दान करना हमारी संस्कृति है। छत्तीसगढ़ में भी हिंदू संवत्सर के पौष माह की पूर्णिमा तिथि पर हर घर में दान देने की परंपरा निभाई जाती है। इस दिन कोई भी मांगने के लिए आ जाए तो उसे कुछ न कुछ देकर ही विदा किया जाता है। दान देने का यह पर्व छेरछेरा के नाम से जाना जाता है।

छेरछेरा को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह छोटे बच्चो में देखा गया।
छेरछेरा के दिन बच्चे सुबह से थैला लेकर छेरछेरा मांगते नजर आए वही बड़े लोग समूह में बैंड बाजा, ढोलक या मांदर के थाप पर छेरछेरा मांगते दिखे।
जब कोई किसी के घर दान मांगने जाता है तो वह ऊंची आवाज में गीत गाता है। ‘छेरी के छेरा छेरछेरा…माई कोठी के धान ला हेरहेरा… इस गीत को गाया जाता है। गीत सुनकर घर के लोग समझ जाते हैं कि कोई छेरछेरा मांगने आया है। घर के लोग अनाज, पैसे देते हैं। किसान यह मानते हैं कि दान देने से उनके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है।
दान देने का यह कार्यक्रम सुबह से लेकर दोपहर तक चला। उसके बाद लोग शाम को मेला मड़ाई का आनंद लेने आसपास के तीर्थस्थलो जैसे चितावर धाम, लक्ष्मणा, सोमनाथ आदि स्थानों पर गए।
ज्ञात हो कि पौष पूर्णिमा को हर छोटे – बड़े तीर्थस्थलो में आज के दिन मेला मड़ाई का आयोजन किया जाता है।सिमगा : पौष पूर्णिमा के दिन सिमगा ब्लॉक के ग्राम नवागाँव एवं आसपास के गांव में मनाया गया छेरछेरा का पर्व, इस दिन धान के दान का है खास महत्व। दान देने का छत्‍तीसगढ़ का यह पर्व छेरछेरा के नाम से जाना जाता है। इस वर्षं यह 25 जनवरी को मनाया गया | सनातन संस्कृति में दान देने की परंपरा हजारों साल से चली आ रही है। राजा बलि ने तीनों लोक भगवान विष्णु को दान कर दिया था। इसी तरह कर्ण भी अपना कवच, कुंडल दान करके महा दानी कहलाए। बर्बरीक ने भी अपना शीश दान किया और खाटू श्याम के रूप में पूजे गए। दान करना हमारी संस्कृति है। छत्तीसगढ़ में भी हिंदू संवत्सर के पौष माह की पूर्णिमा तिथि पर हर घर में दान देने की परंपरा निभाई जाती है। इस दिन कोई भी मांगने के लिए आ जाए तो उसे कुछ न कुछ देकर ही विदा किया जाता है। दान देने का यह पर्व छेरछेरा के नाम से जाना जाता है। छेरछेरा को लेकर सबसे ज्यादा उत्साह छोटे बच्चो में देखा गया। छेरछेरा के दिन बच्चे सुबह से थैला लेकर छेरछेरा मांगते नजर आए वही बड़े लोग समूह में बैंड बाजा, ढोलक या मांदर के थाप पर छेरछेरा मांगते दिखे। जब कोई किसी के घर दान मांगने जाता है तो वह ऊंची आवाज में गीत गाता है। ‘छेरी के छेरा छेरछेरा…माई कोठी के धान ला हेरहेरा… इस गीत को गाया जाता है। गीत सुनकर घर के लोग समझ जाते हैं कि कोई छेरछेरा मांगने आया है। घर के लोग अनाज, पैसे देते हैं। किसान यह मानते हैं कि दान देने से उनके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। दान देने का यह कार्यक्रम सुबह से लेकर दोपहर तक चला। उसके बाद लोग शाम को मेला मड़ाई का आनंद लेने आसपास के तीर्थस्थलो जैसे चितावर धाम, लक्ष्मणा, सोमनाथ आदि स्थानों पर गए। ज्ञात हो कि पौष पूर्णिमा को हर छोटे – बड़े तीर्थस्थलो में आज के दिन मेला मड़ाई का आयोजन किया जाता है।

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