राजनांदगांव : भारतीय परम्परों,खानपान,वैचारिक आचरण में लगातार विदेशी सभ्यताओ का आकर्षण इतना बढ़ गया है कि हम अपने भारत की हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता को अब भूलने लगे है जिसका व्यवहारिक पक्ष मात्र औपचारिक नजर आने लगा है। जो भारतीय लोगो के लिए अत्यंत चिता का विषय है। हमें देखना चाहिए विदेशों में भारतीय सभ्यताओं की भारतीय संस्कृति की कितनी सराहना की जाती है। यहाँ तक अब तो विश्व स्तर पर वैज्ञानिक जनों ने भी भारतीय खानपान भारतीय रहन सहन की सराहना करने लगे है। विदेशों में प्रमुख अनुसंधान केंद्र भी अब हमारे सभ्यताओं के अनुरूप लोगो को खानपान रहन सहन यहाँ तक कि भारतीयों के अनुरूप वेशभूषा की भी सराहना होने लगी है। क्योंकि विश्व पटल पर भारतीय सभ्यताओं को हर प्रकार से व्यक्तित्व विकास,स्वास्थ्य,बौद्धिक छमताओ के अनुरूप भारतीयों के व्यवहारिक आचरण के अनुसंधान में सर्वोच्च श्रेणी में पाया गया है।
इन सब पर चिंतित कर देने वाला विषय यह है कि जिस भारतीय सभ्यता संस्कृति खानपान का समूचे विश्व मे अनुसरण की प्रकिया में गति देखी जा रही है। वही भारत वर्ष में भारतीय परिवेश में रह रहे। लोगो को पुराने ख्यालात का समझ कर छिन दृष्टि से देखा जाने लगा है। हम हमारी परंपराओ को ही नही समझ पा रहे। जिसमे हमारी सभी मूलभूत समस्याओं का हल छुपा है। 20 सालों में अनेकों नई बीमारियों को जन्म लेते हमने देखा है। कई बीमारी बी पी शुगर तो अब आम बात हो गई है। विदेशी मकड़जाल में हम इस तरह फसते जा रहे है कि हमे कुछ भी समझ नही आ रहा है। जन्म लेता बच्चा विदेशी चलन के चलते दूघ पाउडर केमिकल युक्त आहार लें रहा है। क्या दे रहे है। हम अपने आने वाली पीढ़ी को यह विचारणीय है।
समाज के प्रत्येक वर्ग को इस बात की चर्चा करनी होगी यह विदेशी सभ्यता यह पश्चिमी आचरण हम सभी को अंदर से किस तरह से खोखला कर रहा है जरूर हम सभी को फिर से अपने भारतीय परिवेश के महत्व को समझना और लोगो को समझाना होगा तभी भारतीय परचम विश्व पटल पर लहरा सकेगा।