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अब डिप्लोमाधारी भी बन सकेंगे मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक

रायपुर : स्वास्थ्य विभाग मे सरकार द्वारा किया गया है बडा बदलाव। जिसमे
बदले नियम डिप्लोमा धारक बन सकेंगे मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक। लेकिन दुसरी तरफ डॉक्टरों ने जताई कड़ी आपत्ति।
इस संबंध में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने शिक्षक पात्रता योग्यता के लिए नए दिशा-निर्देशों का एक मसौदा जारी किया है। इसके तहत अब डिप्लोमा धारक को भी मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक बनाने का प्रस्ताव है। मसौदा जारी होने के बाद मामले में डॉक्टरों ने कड़ी आपत्ति जताई है।

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बता दे कि मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नए नियम बनाए गए हैं। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने शिक्षक पात्रता योग्यता के लिए नए दिशा-निर्देशों का एक मसौदा भी जारी किया जिसमें डिप्लोमा धारक को भी मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक बनाने का प्रस्ताव है। हालांकि इसके लिए बतौर सीनियर रेजिडेंट का अनुभव होना जरूरी है, लेकिन एनएमसी के इस मसौदे पर डॉक्टरों में काफी नाराजगी है।

गौरतलब हो कि इस मसौदे पर आपत्ति जताते हुए यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्य मित्तल ने कहा कि यह मसौदा चिकित्सा शिक्षा की नींव को कमजोर कर रहा है। इसका सीधा असर हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा वितरण की गुणवत्ता पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि गैर चिकित्सकों को न तो किसी स्थायी संकाय के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए और न ही इन भूमिकाओं के लिए अनुबंध के आधार पर नियुक्ति मिलनी चाहिए। तेलंगाना मेडिकल काउंसिल के उपाध्यक्ष डॉ. जी श्रीनिवास ने भी कहा कि ऐसी नियुक्तियों से शिक्षा की गुणवत्ता में बाधा आएगी। 2017 से सीनियर रेजिडेंट के रूप में कर रहा हो काम
चिकित्सा संस्थानों में संकाय की नियुक्ति के लिए सामान्य मानदंड के अनुसार, सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 2017 से सीनियर रेजिडेंट के रूप में काम कर रहे डिप्लोमा धारक सहायक प्रोफेसर के लिए पात्र हो सकते हैं। इसी तरह एनाटॉमी, बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी विषयों के लिए गैर चिकित्सक सीनियर रेजिडेंट और सहायक शिक्षक बन सकते हैं। हालांकि तीन विषयों के लिए पीएचडी की उपाधि होना अनिवार्य है। यह नियम माध्यमिक अवधि के लिए लागू होंगे जिसका मतलब यह है कि किसी विषय के लिए पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध न होने पर यह नियुक्तियां की जा सकती हैं।अनुभव के आधार पर शिक्षक बनाना गलत।

वही नई दिल्ली स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर कबीर का कहना है कि एनएमसी उस डिप्लोमा धारक को नियुक्त करने की मंजूरी दे रहा है जिसने कभी थीसिस नहीं की है। इसके लिए एक एमडी डॉक्टर को कम से कम तीन वर्ष लगते हैं और उसके साथ सीनियर रेजिडेंट की जिम्मेदारी संभालता है। इन सबमें एक लंबा वक्त लगता है जिसके बाद ही वह शिक्षक वर्ग में आ सकता है लेकिन सिर्फ अनुभव के आधार पर डिप्लोमा धारक को शिक्षक बनाना चिकित्सा शिक्षा के लिए नुकसान भरा होगा। शिक्षक या फिर डॉक्टरों की कमी को दूर करना जरूरी है लेकिन उसके लिए इस तरह के नियम लागू करना भी उचित नहीं है। एम बी बी एस के बाद पीजी डिप्लोमा धारकों को लाभ। नए दिशा निर्देश उन डिप्लोमा धारकों के लिए हैं। जिन्होंने एम बी बी एस के बाद चिकित्सा में स्नातकोत्तर (पीजी) डिप्लोमा लिया है। साल 2017 में एमसीआई ने पीजी डिप्लोमा धारकों को अस्पताल में सीनियर रेजिडेंट के रूप में काम करने की अनुमति दी। तब भी डॉक्टरों ने इस फैसले का काफी विरोध किया क्योंकि इससे पहले तक सर्जरी में मास्टर्स (एमएस) या डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) पास करने वाले ही इसके पात्र थे और यही कॉलेजों में संकाय सदस्य बनने के लिए योग्यता थी। अब एनएमसी ने इन्हें सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त करने का फैसला लिया है।

हालांकि यह अभी विचाराधीन है। इस पर मसौदा तैयार किया गया है। जिसमे अभी विचारों को आमंत्रित किया जा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में कोई भी विभागीय आदेश पारित नहीं किया गया है। आधिक जानकारी के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के पोर्टल मे जानकारी ले सकते हैं।

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