
ब्रेकिंग : अनाथ बच्ची के सपनों की मानो हत्या शिक्षा की चौखट पर रौंद दिए गए मासूमों के सपने
धरमजयगढ़ : एक अनाथ बच्ची, जिसकी दुनिया सिर्फ़ शिक्षा थी, उसे सिस्टम ने ही उससे महरूम कर दिया। कक्षा 5वीं की छात्रा दशिला मंझवार, जो आदिवासी कन्या आश्रम पुरूंगा में रहकर पढ़ रही थी, को एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा देने से रोक दिया गया। यह सिर्फ़ एक गलती नहीं, बल्कि एक मासूम के सपनों, अधिकारों और भविष्य की संगठित हत्या है।सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि हॉस्टल अधीक्षिका नमिता राठौर की परीक्षा ड्यूटी भी उसी परीक्षा केंद्र में थी, जहाँ दशिला को परीक्षा देने जाना था। यानी वह आसानी से बच्ची को अपने साथ ले जा सकती थीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इससे उनकी वंचित बच्चों के प्रति संवेदनहीनता और उदासीनता खुलकर सामने आ गई। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ़ लापरवाही थी, या फिर किसी गहरी उदासीन मानसिकता का परिणाम।

जब इस शर्मनाक मामले पर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) रवि सारथी से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा, “संभवतः बच्ची हॉस्टल में पहले से चल रहे विवादों की शिकार हो सकती है।” क्या अब सरकारी हॉस्टल राजनीति और गुटबाज़ी के अड्डे बन गए हैं, जहाँ अनाथ बच्चों को उनके हक़ से वंचित किया जाता है? अगर दशिला वाकई किसी विवाद का शिकार हुई, तो प्रशासन ने अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की? या फिर यह मामला दबाने की कोशिश हो रही है। BEO ने सफाई देते हुए कहा कि अगर दशिला 5वीं पास कर लेती है, तो उसे जमरगां स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में प्रवेश दिया जाएगा। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह बच्ची अपने सपनों के साथ समझौता करने के लिए मजबूर कर दी गई? क्या प्रशासन अब भी इसे छोटी गलती मानकर रफा-दफा करने की कोशिश कर रहा है? क्या उसे दोबारा एकलव्य विद्यालय में दाखिले का मौका मिलेगा?
गौरतलब हो कि दशिला के पिता का निधन हो चुका है और उसकी माँ ने उसे बेसहारा छोड़ दिया। वह पूरी तरह से सरकारी हॉस्टल पर निर्भर है। सरकारी नियमों के मुताबिक, ऐसे बच्चों को “अनाथ” की श्रेणी में रखते हुए शिक्षा और विशेष आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए। लेकिन सिस्टम की लापरवाही ने दशिला को उसके अधिकार से वंचित कर दिया। तो क्या “अनाथ” का तमगा सिर्फ़ कागजों में दिया जाता है, और जब हक़ की बात आती है, तो सरकार का दिल पत्थर हो जाता है। यह घटना अकेले दशिला की नहीं है, बल्कि उन हजारों वंचित बच्चों की सच्चाई उजागर करती है, जिन्हें प्रशासनिक लापरवाही और असंवेदनशीलता की सजा भुगतनी पड़ती है। सवाल यह है कि क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी सरकारी “जांच” की आड़ में दफना दिया जाएगा? क्या प्रशासन अपने अपराध का प्रायश्चित करेगा, या फिर एक और मासूम को सपनों की चिता पर जलता छोड़ देगा।