श्री उदितमुनि नाम साहेब ने परम पुज्य संत चिन्मयानंद जी से प्रयागराज मे भेट कीये
ईलहाबाद मंगलवार, 16 जनवरी : महाकुंभ मेला प्रयागराज के चतुर्थ दिवस पर नवोदित वंशाचार्य परम पूज्य पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब ने अपने संत-महंतों एवं केडीवी मिशन के पदाधिकारियों के साथ परम पूज्य संत श्री चिन्मयानंद बापू जी से उनकी छावनी में भेंट-मुलाकात की।
नवोदित वंशाचार्य साहब के छावनी पहुंचने पर श्री चिन्मयानंद बापू जी ने उनका हार्दिक स्वागत किया। वही सम्मानपूर्वक आसन प्रदान किया।इस अवसर पर
कबीरपंथ के वरिष्ठ महंत एवं केडीवी मिशन के राष्ट्रीय प्रचारक, महंत श्री परवत दास जी एवं केडीवी मिशन के राष्ट्रीय प्रतिनिधि, महंत डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी ने श्री चिन्मयानंद बापू जी को नवोदित वंशाचार्य साहब एवं कबीरपंथ का संक्षिप्त परिचय दिया। तत्पश्चात, केडीवी मिशन के मिशन प्रमुख श्री ओम राजेश फुतारिया जी ने बापू जी को केडीवी मिशन की विस्तृत जानकारी प्रदान कीये। जिसकी उन्होंने भूरि-भूरि प्रशंसा कीया।
बता दे कि नवोदित वंशाचार्य साहब और श्री चिन्मयानंद बापू जी के मध्य सद्गुरु कबीर साहब के मूल ज्ञान पर एक गंभीर और सारगर्भित चर्चा हुई। इस वार्तालाप का मुख्य विषय था – कबीर साहब के मौलिक ज्ञान और उनके सिद्धांतों को जन-साधारण तक प्रमाणिक रूप से कैसे पहुंचाया जाए।
श्री चिन्मयानंद बापू जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए। कहा कि सद्गुरु कबीर साहब का ज्ञान सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि निर्गुण भक्ति की समस्त परंपरा कबीर साहब के ज्ञान के बिना अधूरी है। उनका ज्ञान न केवल आध्यात्मिक मार्ग का दीपक है। बल्कि समाज के लिए भी एक प्रकाश स्तंभ के समान है।
अवगत हो की लगभग एक घंटे तक चले। इस गहन आध्यात्मिक विमर्श में सद्गुरु कबीर साहब के ज्ञान की विभिन्न पहलुओं पर भी विचार-विमर्श हुआ। इस दौरान दोनों विद्वानों ने सद्गुरु कबीर साहब के ज्ञान को वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
यह वार्तालाप न केवल ज्ञानवर्धक ही नहीं। अपितु इसने कबीर साहब के विचारों को आधुनिक समाज में प्रसारित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम की नींव भी रखी।
इस कार्यक्रम के समापन पर, नवोदित वंशाचार्य साहब ने श्री चिन्मयानंद बापू जी को अपनी छावनी में पधारने का निमंत्रण दिया। जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। अंत में नवोदित वंशाचार्य साहब ने उन्हें सद्गुरु कबीर साहब के कई महत्वपूर्ण ग्रंथ भेंट स्वरूप प्रदान किए, और फिर उनकी छावनी से प्रस्थान किया।