ग्राम छत्तौद मे हलषष्ठी पूजा कर संतानो की दीर्घायु व सुख-समृद्धि की कीये कामना
तिल्दा नेवरा : समीपस्थ क्षेत्र के ग्राम छतौद में संतान की दीर्घायु और खुशियों की कामना के लिए ग्राम पंचायत छत्तौद की महिलाओं ने अलग अलग पारा मोहल्ले मे महिलाएं हलषष्ठी पूजा कीये। देश में हर साल हलषष्ठी का व्रत महिलाओं के द्वारा रखी जाती हैं। इसी कड़ी मे ग्राम पंचायत छत्तौद की महिलाओं ने भी हलषष्ठी पूजा किये।
बता दे कि मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से संतान को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है। इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। एवं उन्हीं के नाम पर इस पावन पर्व का नाम हल षष्ठी पड़ा है। हलषष्ठी के दिन माताओं को महुआ की दातुन और महुआ खाने का विधान है। इस पूजा कार्यक्रम का विधि विधान से महाराज के द्वारा पूजा विधि के बारे में बताया। वही कथा का वाचन उपस्थित महिलाओं के बीच किया।
पूजाविधि-
हलषष्ठी के दिन महिलाएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। फिर भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की पूजा कर छठ माता की पूजा की जाती है। कई जगह महिलाएं घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर,उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं एवं हल षष्ठी की कथा सुनती हैं। मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन दूध,घी,सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन नहीं करना चाहिए।
हलषष्ठी व्रत का महत्व-
हलषष्ठी के दिन संतान की प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। इसके साथ बलराम जयंती होने के कारण इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा भी की जाती है।
हलषष्ठी व्रत की कथा-
सबसे प्रचलित कथा के अनुसार एक ग्वालिन दूध दही बेचकर अपना जीवन व्यतीत करती थी। एक बार वह गर्भवती दूध बेचने जा रही थी तभी रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक झरबेरी पेड़ के नीचे बैठ गई और वहीं पर एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता थी इसलिए वह अपने पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गांव में दूध बेचने के लिए चली गई। उस दिन हलछठ का व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था लेकिन ग्वालिन ने लोभवश गाय के दूध को भैंस का बताकर सबको दूध बेच दिया। इससे छठ माता को क्रोध आया और उन्होंने उसके बेटे के प्राण हर लिए। ग्वालिन जब लौटकर आई तो रोने लगी और अपनी गलती का अहसास किया। इसके बाद सभी के सामने उसने अपना गलती स्वीकार कर पैर पकड़कर माफी मांगी। इसके बाद हर छठ माता प्रसन्न हो गई और उसके पुत्र को जीवित कर दिया। इस वजह से ही इस दिन पुत्र की लंबी उम्र की कामना से हलछठ का व्रत व पूजन किया जाता है। इस पूजन और व्रत धारी महिलाओं में अमृत सुमन राजपूत,सुलोचना साहू,हेमिनसाहू, सुभद्रा साहू,कुसुम वर्मा,सूरज साहू, रेणु वर्मा, दुर्गेस्वरी वर्मा,मधु वर्मा,पूनम साहू,लता साहू,लक्ष्मी साहू,इत्यादि महिलाओं ने व्रत किया।