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पत्रकारिता और साहित्य मनुष्य के जीवन का रक्षा कवच है : डॉ. चित्तरंजन कर

रायपुर (जयराम धीवर की रिपोर्ट) : छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के पुरोधा पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी की जयंती पर प्रेस क्लब रायपुर और छत्तीसगढ़ साहित्य एवं संस्कृति संस्थान की ओर से संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

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इस अवसर परमुख्य अतिथि भाषाविद डॉ.चित्तरंजन कर ने कहा कि एक पत्रकार को साहित्यकार भी होना चाहिए। पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी इसके प्रेरक थे। उनके पास साहित्य के कारण रचनात्मक चिंतन दृष्टि थी। छत्तीसगढ़ को संवारने का काम उन्होंने किया। छत्तीसगढ़ का निर्माण पत्रकारिता और साहित्य संस्कृति से हुआ है राजनीति इसकी अनुगामी रही। समाचार सम्यक आचार की दृष्टि देता है। समारोह के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत शैलेन्द्र कुमार त्रिवेदी, शिरीष त्रिवेदी, राजेश गनोदवाले, सुरेश मिश्रा, रत्ना पांडेय, आदि ने किया। प्रारंभ में डॉ सुधीर शर्मा ने कहा कि सन् 1920 में पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी के पिता जो स्वयं स्वतंत्रता सेनानी पं गयाचरण त्रिवेदी ने अपने बच्चों का नाम स्वराज्य, स्वतंत्र और स्वाधीन रखा।

विशिष्ट वक्ता वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज ने कहा कि सन् 1900 में छत्तीसगढ़ के कस्बों से पत्रकारिता ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। बिना संसाधन के पेंड्रा, खैरागढ़ और रायगढ़ जैसे स्थानों से स्तरीय पत्रकारिता ने जन्म लिया।विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्ष एवं प्रभारी कुलसचिव डॉ नरेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि पं स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के विश्वविद्यालय थे। सैकड़ों युवाओं को स्थापित पत्रकार बनाने में उनकी भूमिका रही है। समाज, राजनीति, संस्कृति और शासन के मध्य सेतु की तरह कार्य कर रहे थे। वरिष्ठ इतिहासकार डॉ रमेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि इतिहास के प्रति पं त्रिवेदी में असीम चेतना थी। उन पर अनुसंधान का कार्य कराया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने कहा कि प्रेस क्लब अपने पूर्वजों की स्मृति को यादगार बनाने संकल्पित है।

पत्रकार और साहित्यकार के पसीने की बूंद से इस राज्य का निर्माण हुआ है। पत्रकारिता आज आधुनिक डिजिटल युग में है और यह चुनौती भरा कार्य है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आज भी खतरा है। सत्ता आज भी सवाल पूछने वाले को पसंद नहीं करता। पत्रकारिता और साहित्य का नैतिक दायित्व है कि वह समाज को जागृत करते रहे। भावे संगोष्ठी के बाद संस्थान की महिला इकाई की बैठक हुई।

इस समारोह में श्री हसन खान, डॉ एल एस निगम, बलदाऊ साहू, मधुकर द्विवेदी, माधुरी कर, डॉ सीमा निगम, शकुंतला तरार, डॉ मीता अग्रवाल, सुप्रिया शर्मा, आशा मानव, भारती यादव, डॉ सीमा श्रीवास्तव, सीमा अवस्थी, लतिका भावे आदि उपस्थित थे।

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