बजरंग प्लांट टंडवा मे मजदूर की मौत 21 लाख मुवावजा मे ही मनवा लिए गयेे
तिल्दा नेवरा : छत्तीसगढ़ के जिला रायपुर के अंतर्गत आने वाले विकासखंड तिल्दा नेवरा के समीपस्थ ग्राम टंडवा में श्री बजरंग पॉवर एन्ड इस्पात कम्पनी में कार्यरत एक मजदूर की करेंट के चपेट आ जाने से मौत हो गई। । सूत्रों के अनुसार मृतक ठेका कर्मी मजदूर जिसका नाम विकाश कुमार ध्रुव जिसका उम्र लगभग (22) वर्ष था। वह ड्यूटी के बाद ओवर टाईम पर ग्राइंडर मशीन चला रहा था। जिसमे उस ग्राईडर का वायर छीला हुआ था। जीसकी चपेट में विकास ध्रुव आ जाने से मौत हो गई।
बता दे कि इस घटना के तुरंत बाद कम्पनी प्रबंधन द्वारा युवक को तत्काल मिशन अस्पताल तिल्दा जांच व उपचार के लिए भेजा गया । जहां विकास ध्रुव की मौत होजाने की पुष्टि डांक्टरो के द्वारा किया गया। वही इस घटना की जानकारी परिवार वालों को उनके सहकर्मियों के द्वारा दिया गया। तब सभी परिवार के लोग मिशन अस्पताल तिल्दा पहुंचे।वही तिल्दा नेवरा के नये पदस्थ थाना प्रभारी सत्येंद्र सिंह श्याम अपने पुलिस बल सहित मोके पर गये।
गौरतलब हो कि मामले की जानकारी आग की तरह फैल गई थी। तभी इससे पहले कि छत्तीसगढीया क्रांति सेना के युवाओं की भारी भीड़ जमती। प्रबंधन के द्वारा कुछ सहकर्मी व आसपास के लोगों के साथ समझौता करते हुए। कुछ लोगो की मौजूदगी में ही 21 लाख रुपए देने की सहमति बना लीया। जिसमें कंपनी प्रबंधन ने 18 लाख रुपए का चेक और तीन लाख रूपये नगद परिजनों को दिये जाने की बात सामने आई है। । तत्पश्चात इस घटना की तिल्दा नेवरा पुलिस ने मर्ग कायम कर। शव का पोस्टमार्टम करवा कर, मृतक के शव को परिजनों को सुपुर्द किया गया ।
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ के जिला रायपुर व बलौदाबाजार जिले के अन्तर्गत संचालित औद्योगिक क्षेत्र सिलतरा, उरला, तिल्दा आदि की फैक्ट्रीयों में आए दिन कहीं न कहीं हादसे होते रहते हैं। इस पर हेल्थ एन्ड सेफ्टी विभाग के द्वारा समय-समय पर इमानदारी व औचक निरीक्षण कर। औद्योगिक सुरक्षा को लेकर सख्ती बरतनी चाहिए। लेकिन अक्सर अयसी घटनाओं से यह प्रतित होता है कि इस आला अधिकारियों व कर्मचारियों, व सरकार की लीपापोती ही नजर आता है। क्योंकि उद्योगपति ही वर्तमान मे सरकार चला रहे हैं।विडंबना यह भी है कि औद्योगिक श्रमिकों व कर्मचारियों के भविष्य सुरक्षा व स्वास्थ्य को लेकर कई खास मसौदे नही बनाये गये हैं। इतना ही नहीं सरकार के द्वारा राजपत्र मे कुछ एकांत घोषणा भी की जाती है। उसका उद्योगपतियों से पालन भी नही करवा पाते है। वही मंत्रीमंडल मे या सरकार मे बडे बडे उद्योगपति का ही कब्जा या बोलबाला भी सुनने को मिलता है। अयसे मे बेचारे औद्योगिक श्रमिक बालि का बकरा बन रहे हैं। कुछ को दुर्घटना के बाद कुछ मुवावजा मील भी जाता है। बहुतो को कुछ भी नहीं मीलता है। अब बेरोजगारी से बचने के लिये। करे तो क्या करे। मरता नहीं तो क्या करता वाले हिसाब है।