
तिब्बती विरोध प्रदर्शन: चीन के खिलाफ उठी स्वतंत्रता की आवाज
नई दिल्ली में तिब्बती शरणार्थियों का प्रदर्शन, पुलिस से झड़पें
नई दिल्ली – चीनी दूतावास के बाहर तिब्बती शरणार्थियों ने चीन के शासन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। यह विरोध तिब्बती विद्रोह की 66वीं वर्षगांठ के अवसर पर हुआ, जब 1959 में तिब्बतियों ने पहली बार चीनी नियंत्रण का विरोध किया था।
प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। तिब्बती समुदाय का कहना है कि चीन उनके अधिकारों और संस्कृति को दबा रहा है और वे दुनिया को अपनी पीड़ा बताना चाहते हैं।
धर्मशाला में भी गूंजे विरोध के स्वर
नई दिल्ली के अलावा, धर्मशाला में भी तिब्बतियों ने बड़ा प्रदर्शन किया। यह शहर तिब्बती सरकार-इन-एक्ज़ाइल (निर्वासन सरकार) का मुख्यालय है, जहां तिब्बती समुदाय के कई नेता और नागरिक रहते हैं। प्रदर्शनकारियों ने तिब्बत की आज़ादी और चीन की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई।
तिब्बती संस्कृति और पहचान पर संकट
तिब्बती लोगों का मानना है कि चीन की नीतियां उनकी परंपराओं, धर्म और भाषा को खत्म कर रही हैं। वे चाहते हैं कि दुनिया उनके संघर्ष को समझे और उनका समर्थन करे।
हर साल 10 मार्च को दुनिया भर में तिब्बती समुदाय इस दिन को याद करता है और प्रदर्शन आयोजित करता है। यह दिन तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए चल रहे संघर्ष का प्रतीक है।
भारत-चीन संबंधों पर असर
भारत में तिब्बतियों को शरण और स्वतंत्र रूप से विरोध करने की अनुमति दी गई है, जिससे भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ सकता है। चीन नहीं चाहता कि तिब्बती शरणार्थी उसके खिलाफ आवाज उठाएं, लेकिन भारत में उन्हें यह स्वतंत्रता प्राप्त है।
यह प्रदर्शन मानवाधिकारों और तिब्बती स्वतंत्रता के मुद्दे को फिर से दुनिया के सामने लाता है। तिब्बती समुदाय का संघर्ष अभी भी जारी है, और वे तब तक लड़ते रहेंगे जब तक उन्हें अपनी पहचान और स्वतंत्रता नहीं मिल जाती।